है उठती मिट्टी की गंध
दौड़ आतीं बचपन की यादें
वर्तमान हो जाता मंद
है बारिश का अतीत से
कुछ तो गहरा ही संबंध
बीता वो हर पल करे
भविष्य प्रेरणा का प्रबंध
बेफिक्री का रस पीकर
निश्चिंत होकर भीगना
अभिव्यक्ति का एक ही उपाय
गला फाड़कर चीखना
सहसा पर क्या यह हुआ
ठहर गया अंदर का तेज
है क्या बदला तब से अब तक
हुआ उत्साह से ही परहेज
भावनाओं को दे लगाम
हर्ष को कर के सीमाबद्ध
खर्चे श्वास अंधा धुन्ध
योजना कर दी खुशी की रद्द
करना प्यार नमी से ही है
आँसू क्यों, बारिश ही चुनू
पुनः बनू बालक मै सरल
पुनः मै अपनी चीख सुनू
<< भय संग्राम | छल का शिकार >> |
मेरी रचनाएँ... |
प्रवर्द्धित विप्रलंभ |
Valentine’s Day – दो टूक! |
दुरभिसन्धि |
आख़िर क्या चाहिए? |
संघर्ष – निष्कर्ष |
छल का शिकार |
बारिश और अतीत |
भय संग्राम |
वो चेहरा |
सभ्यता की मै कठपुतली |
दर्द |
कारण क्यों? |
नव वर्ष |