बारिश और अतीत

होती जब है ज़ोर से बारिश
है उठती मिट्टी की गंध
दौड़ आतीं बचपन की यादें
वर्तमान हो जाता मंद

है बारिश का अतीत से
कुछ तो गहरा ही संबंध
बीता वो हर पल करे
भविष्य प्रेरणा का प्रबंध

बेफिक्री का रस पीकर
निश्चिंत होकर भीगना
अभिव्यक्ति का एक ही उपाय
गला फाड़कर चीखना

सहसा पर क्या यह हुआ
ठहर गया अंदर का तेज
है क्या बदला तब से अब तक
हुआ उत्साह से ही परहेज

भावनाओं को दे लगाम
हर्ष को कर के सीमाबद्ध
खर्चे श्वास अंधा धुन्ध
योजना कर दी खुशी की रद्द

करना प्यार नमी से ही है
आँसू क्यों, बारिश ही चुनू
पुनः बनू बालक मै सरल
पुनः मै अपनी चीख सुनू
<<  भय संग्राम छल का शिकार  >>
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संघर्ष – निष्कर्ष
छल का शिकार
बारिश और अतीत
भय संग्राम
वो चेहरा
सभ्यता की मै कठपुतली
दर्द
कारण क्यों?
नव वर्ष

वो चेहरा

करते अवलोकन तुम्हारे नैन
मुखाकृति पर टिकी चेतना प्रसन्न
मनोहर मुस्कान की तुम धनी
हर अभिलक्षण है तुम्हारा संपन्न

तेज तुम्हारा है स्रोत उर्जा का
जगाता अक्षोभ की अभिलाषा
वीराने मे सृजनहार ने जैसे
विलक्षण दृश्य है तराशा
<<  सभ्यता की मै कठपुतली भय संग्राम  >>
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बारिश और अतीत
भय संग्राम
वो चेहरा
सभ्यता की मै कठपुतली
दर्द
कारण क्यों?
नव वर्ष

नव वर्ष

इस मील के पत्थर की
रहे अनन्यता अविजित
बटोर के वर्त्तमान का मनोरथ
निर्मित करें नए क्षितिज

ध्येय पूर्ति का आधार हो
सत्य एवं निष्ठा का आदर्श
कर्म ऐसे हों अर्थपूर्ण
जो करें जन-साधारण को स्पर्श

कुंठित अभिलक्षण करें तीव्र
बने तीक्ष्ण एवं सचेत
छोड़ सुविधा, चुने मार्ग कठिन
शीतल बर्फ या हो तप्त रेत

स्पंदित करके चेतना
भरके ह्रदय मे हर्ष
प्रवेश करें उस मंडल मे
जिसे कहते हैं नया वर्ष
कारण क्यों?  >>
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भय संग्राम
वो चेहरा
सभ्यता की मै कठपुतली
दर्द
कारण क्यों?
नव वर्ष