हैं छिपे सदियों के सिलसिले
होते थे युद्ध घमासान जहां
वीरान पड़े हैं आज वो किले
हैं डूब रही दोनों ही आँखे
खोजतीं, कोई किनारा तो मिले
कदम लड़खड़ाते, हाथ पसारते
ढूँढ़ते, कोई सहारा तो मिले
बीते युग, बिन मुस्कुराए
हुए बरसों चहरे को खिले
व्याकुल मन, होने को प्रसन्न
उपयुक्त कोई संदर्भ तो मिले
संघर्ष से भरी भूमिका के
मिलने उसे लगे हैं सिले
है आत्मा गहन घायल पड़ी
और पाँव नितांत गंभीर छिले
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