वो चेहरा

करते अवलोकन तुम्हारे नैन
मुखाकृति पर टिकी चेतना प्रसन्न
मनोहर मुस्कान की तुम धनी
हर अभिलक्षण है तुम्हारा संपन्न

तेज तुम्हारा है स्रोत उर्जा का
जगाता अक्षोभ की अभिलाषा
वीराने मे सृजनहार ने जैसे
विलक्षण दृश्य है तराशा
<<  सभ्यता की मै कठपुतली भय संग्राम  >>
DIGITAL CAMERA
मेरी रचनाएँ...
प्रवर्द्धित विप्रलंभ
Valentine’s Day – दो टूक!
दुरभिसन्धि
आख़िर क्या चाहिए?
संघर्ष – निष्कर्ष
छल का शिकार
बारिश और अतीत
भय संग्राम
वो चेहरा
सभ्यता की मै कठपुतली
दर्द
कारण क्यों?
नव वर्ष