प्रवर्द्धित विप्रलंभ


उदास हुआ मैं अक्सर
और परेशान भी कई बार
पर हर बार है पाया
कंधे पर तेरा हाथ
हर पल में तेरा साथ

कुछ कह कर कुछ सुन कर
बाँटे कई उत्तेजक क्षण
तेरी सोहबत में सदा ही
गुज़री है मेरी रात
अधीरता को देकर मात

आज तुम नहीं हो पास
तो ये उलझन, ये दिक्कत, ये परेशानी
परम अचेत कर जाती है
जैसे परजीव की जात
अथवा तरक्शु का घात

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मेरी रचनाएँ...
प्रवर्द्धित विप्रलंभ
Valentine’s Day – दो टूक!
दुरभिसन्धि
आख़िर क्या चाहिए?
संघर्ष – निष्कर्ष
छल का शिकार
बारिश और अतीत
भय संग्राम
वो चेहरा
सभ्यता की मै कठपुतली
दर्द
कारण क्यों?
नव वर्ष

Valentine’s Day – दो टूक!


क्या प्रणय एक दिवस की कृपा पर?
चाह एक व्यक्ति पर स्थिरचित्त?
प्रेम एक निम्मित के हेतु?
स्नेह एक नाते पर केंद्रित?

समझे नहीं यथातथ्य कदाचित्
और उचित वात्सल्य का आशय
करें आचरण अपना स्कंदित
सकल अनुरक्ति से प्रज्वलित

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Valentine’s Day – दो टूक!
दुरभिसन्धि
आख़िर क्या चाहिए?
संघर्ष – निष्कर्ष
छल का शिकार
बारिश और अतीत
भय संग्राम
वो चेहरा
सभ्यता की मै कठपुतली
दर्द
कारण क्यों?
नव वर्ष

दुरभिसन्धि!


मेरी बेचैनीयों का
समाधान नहीं करती
मैं परेशान रहता हूं
वो जब परेशान नहीं करती

ज़ाहिर है, मेरे सुकून का
इंतज़ाम नहीं करती
बन जाए काम उसका फिर
कोई काम नहीं करती

ऐसा भी नहीं कि मेरा
एहतेराम नहीं करती
ज़हीन इतनी के वो
सरेआम नहीं करती

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Valentine’s Day – दो टूक!
दुरभिसन्धि
आख़िर क्या चाहिए?
संघर्ष – निष्कर्ष
छल का शिकार
बारिश और अतीत
भय संग्राम
वो चेहरा
सभ्यता की मै कठपुतली
दर्द
कारण क्यों?
नव वर्ष