मुखाकृति पर टिकी चेतना प्रसन्न
मनोहर मुस्कान की तुम धनी
हर अभिलक्षण है तुम्हारा संपन्न
तेज तुम्हारा है स्रोत उर्जा का
जगाता अक्षोभ की अभिलाषा
वीराने मे सृजनहार ने जैसे
विलक्षण दृश्य है तराशा
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