वो चेहरा

करते अवलोकन तुम्हारे नैन
मुखाकृति पर टिकी चेतना प्रसन्न
मनोहर मुस्कान की तुम धनी
हर अभिलक्षण है तुम्हारा संपन्न

तेज तुम्हारा है स्रोत उर्जा का
जगाता अक्षोभ की अभिलाषा
वीराने मे सृजनहार ने जैसे
विलक्षण दृश्य है तराशा
<<  सभ्यता की मै कठपुतली भय संग्राम  >>
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मेरी रचनाएँ...
प्रवर्द्धित विप्रलंभ
Valentine’s Day – दो टूक!
दुरभिसन्धि
आख़िर क्या चाहिए?
संघर्ष – निष्कर्ष
छल का शिकार
बारिश और अतीत
भय संग्राम
वो चेहरा
सभ्यता की मै कठपुतली
दर्द
कारण क्यों?
नव वर्ष

कारण क्यों?

हो तुम व्यग्र, कि हूँ क्यों मै सानंद
और क्यों हूँ मै उत्सव मनाता
खोजते प्रयोजन मेरे उत्साह का
और क्यों हूँ मै गीत गाता

मित्र, है आभाव कारणों का
और रिक्त है तर्क का खाता
तुम दोस्त हो मेरे, है पर्याप्त यही
बस, मै हर्षता और मुस्कुराता!
<<  नव वर्ष दर्द  >>
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बारिश और अतीत
भय संग्राम
वो चेहरा
सभ्यता की मै कठपुतली
दर्द
कारण क्यों?
नव वर्ष

नव वर्ष

इस मील के पत्थर की
रहे अनन्यता अविजित
बटोर के वर्त्तमान का मनोरथ
निर्मित करें नए क्षितिज

ध्येय पूर्ति का आधार हो
सत्य एवं निष्ठा का आदर्श
कर्म ऐसे हों अर्थपूर्ण
जो करें जन-साधारण को स्पर्श

कुंठित अभिलक्षण करें तीव्र
बने तीक्ष्ण एवं सचेत
छोड़ सुविधा, चुने मार्ग कठिन
शीतल बर्फ या हो तप्त रेत

स्पंदित करके चेतना
भरके ह्रदय मे हर्ष
प्रवेश करें उस मंडल मे
जिसे कहते हैं नया वर्ष
कारण क्यों?  >>
new-beginning
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भय संग्राम
वो चेहरा
सभ्यता की मै कठपुतली
दर्द
कारण क्यों?
नव वर्ष