आख़िर क्या चाहिए?


दौलत नहीं,
शोहरत नहीं,
ना ही “वाह” चाहिए,
     “कैसे हो”
     बस दो लफ़्ज़ों की
     परवाह चाहिए


चंदन की सी
ख़ुशबू
ख़ुशगवार चाहिए
     तेरी ओर से
     बहने वाली
     हवा चाहिए


इश्क़ में पूरी
होनी मेरी
चाह चाहिए
     ज़्यादा से ज़्यादा “तू”
     और कम से कम
     “खुदा” चाहिए


है सौदा दिलों का,
फिर सिक्का तो
खरा चाहिए
     तू ही तू मंजूर
     ना कोई तेरी
     तरह चाहिए

<<  संघर्ष – निष्कर्ष दुरभिसन्धि!  >>

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मेरी रचनाएँ...
प्रवर्द्धित विप्रलंभ
Valentine’s Day – दो टूक!
दुरभिसन्धि
आख़िर क्या चाहिए?
संघर्ष – निष्कर्ष
छल का शिकार
बारिश और अतीत
भय संग्राम
वो चेहरा
सभ्यता की मै कठपुतली
दर्द
कारण क्यों?
नव वर्ष

कारण क्यों?

हो तुम व्यग्र, कि हूँ क्यों मै सानंद
और क्यों हूँ मै उत्सव मनाता
खोजते प्रयोजन मेरे उत्साह का
और क्यों हूँ मै गीत गाता

मित्र, है आभाव कारणों का
और रिक्त है तर्क का खाता
तुम दोस्त हो मेरे, है पर्याप्त यही
बस, मै हर्षता और मुस्कुराता!
<<  नव वर्ष दर्द  >>
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दुरभिसन्धि
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भय संग्राम
वो चेहरा
सभ्यता की मै कठपुतली
दर्द
कारण क्यों?
नव वर्ष