प्रवर्द्धित विप्रलंभ


उदास हुआ मैं अक्सर
और परेशान भी कई बार
पर हर बार है पाया
कंधे पर तेरा हाथ
हर पल में तेरा साथ

कुछ कह कर कुछ सुन कर
बाँटे कई उत्तेजक क्षण
तेरी सोहबत में सदा ही
गुज़री है मेरी रात
अधीरता को देकर मात

आज तुम नहीं हो पास
तो ये उलझन, ये दिक्कत, ये परेशानी
परम अचेत कर जाती है
जैसे परजीव की जात
अथवा तरक्शु का घात

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मेरी रचनाएँ...
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