क्या प्रणय एक दिवस की कृपा पर?
चाह एक व्यक्ति पर स्थिरचित्त?
प्रेम एक निम्मित के हेतु?
स्नेह एक नाते पर केंद्रित?
समझे नहीं यथातथ्य कदाचित्
और उचित वात्सल्य का आशय
करें आचरण अपना स्कंदित
सकल अनुरक्ति से प्रज्वलित
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