दुरभिसन्धि!


मेरी बेचैनीयों का
समाधान नहीं करती
मैं परेशान रहता हूं
वो जब परेशान नहीं करती

ज़ाहिर है, मेरे सुकून का
इंतज़ाम नहीं करती
बन जाए काम उसका फिर
कोई काम नहीं करती

ऐसा भी नहीं कि मेरा
एहतेराम नहीं करती
ज़हीन इतनी के वो
सरेआम नहीं करती

<<  आख़िर क्या चाहिए? Valentine’s Day – दो टूक!  >>

2789_89351147291_1365144_n

मेरी रचनाएँ...
प्रवर्द्धित विप्रलंभ
Valentine’s Day – दो टूक!
दुरभिसन्धि
आख़िर क्या चाहिए?
संघर्ष – निष्कर्ष
छल का शिकार
बारिश और अतीत
भय संग्राम
वो चेहरा
सभ्यता की मै कठपुतली
दर्द
कारण क्यों?
नव वर्ष

2 thoughts on “दुरभिसन्धि!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *