भर तो लिया आँखो मे पानी
पर जब आई रोने की बारी
तरसा नसीब एक कोने के लिए
जिस्म ही जिस्म मिले आस पास
दिल ना मिला ढूंडे मगर
ना ही कोई था व्याकुल यहाँ
इंसान भरपूर होने के लिए
उस भाव-हीन चेहरे को देख
टूटे कई अरमान थे मेरे
जुड़ा गया यह भार भी
पलकों को मेरी ढोने के लिए
जीवन के इस रूप से
है सीखा सबक मैने अभी
सुर्ख आँखें हैं काफ़ी नही
चैन की नींद सोने के लिए
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Mumbhaaaaaaaaiiiiii!!!!!!!!
Too Good…
यह पंक्तियॉं प्रभावित कर गयी, दिल को छू गयी ।
बहुत बढियॉ।
Nice thoughts .
Touching lines…