दर्द

ले तो लिया सीने मे दर्द
भर तो लिया आँखो मे पानी
पर जब आई रोने की बारी
तरसा नसीब एक कोने के लिए

जिस्म ही जिस्म मिले आस पास
दिल ना मिला ढूंडे मगर
ना ही कोई था व्याकुल यहाँ
इंसान भरपूर होने के लिए

उस भाव-हीन चेहरे को देख
टूटे कई अरमान थे मेरे
जुड़ा गया यह भार भी
पलकों को मेरी ढोने के लिए

जीवन के इस रूप से
है सीखा सबक मैने अभी
सुर्ख आँखें हैं काफ़ी नही
चैन की नींद सोने के लिए
<<  कारण क्यों? सभ्यता की मै कठपुतली  >>
1-7121862363_e6e249cb6c_c
मेरी रचनाएँ...
प्रवर्द्धित विप्रलंभ
Valentine’s Day – दो टूक!
दुरभिसन्धि
आख़िर क्या चाहिए?
संघर्ष – निष्कर्ष
छल का शिकार
बारिश और अतीत
भय संग्राम
वो चेहरा
सभ्यता की मै कठपुतली
दर्द
कारण क्यों?
नव वर्ष

5 thoughts on “दर्द

  1. यह पंक्तियॉं प्रभावित कर गयी, दिल को छू गयी ।

    बहुत बढियॉ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *